लेखनी प्रतियोगिता -15-Dec-2022
हिसाब
एक कटोरे में रखी मिट्टी से बने बर्तन
जैसा इंसान का हिसाब लगता है।
एक कटोरे में रखी मिट्टी से बने बर्तन
जैसा इंसान का हिसाब लगता है।
कैसा है युग है कलयुग का जहां अपना
कहने वाला ही तुम्हें पराया लगता है।
एक कटोरे में रखी मिट्टी से बने बर्तन
जैसा इंसान का हिसाब लगता है।
कैसी ये कोशिश जहां हर कोशिश
किसी ओर की कामयाबी को लिख रही है।
एक कटोरे में रखी मिट्टी से बने बर्तन
जैसा इंसान का हिसाब लगता है।
शेर गलियों में रेंगता है और गधा
और गधा इंसानों का प्रभु बन बैठा है।
एक कटोरे में रखी मिट्टी से बने बर्तन
जैसा इंसान का हिसाब लगता है।
चंद पलों की तलाश में जिंदगी खोया है
कैसा ये संसार है जहां दुख खुशी का
रूप धर बैठा है।
एक कटोरे में रखी मिट्टी से बने बर्तन
जैसा इंसान का हिसाब लगता है।
कोई खोज लाओ टूटे बर्तन के बिखरे
हिस्सों को हम समझ लेंगे उनकी कोशिश को।
राखी सरोज
Shashank मणि Yadava 'सनम'
10-Mar-2023 07:34 PM
बहुत ही सुंदर सृजन
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Sachin dev
15-Dec-2022 05:47 PM
Bahut khoob likha
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RAKHI Saroj
16-Dec-2022 12:42 AM
Thank you
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